April 12, 2025
Dev Uthani Ekadashi: देवउठनी एकादशी व्रत कथा और 5 श्रेष्ठ उपाय

Dev Uthani Ekadashi: देवउठनी एकादशी व्रत कथा और 5 श्रेष्ठ उपाय

Dev Uthani Ekadashi: देवउठनी एकादशी व्रत कथा और 5 श्रेष्ठ उपाय

देवउठनी एकादशी व्रत कथा

Dev Uthani Ekadashi का महत्व हमारे धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं में अत्यधिक है। यह व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, और प्रबोधिनी एकादशी जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के चतुर्मासिक योग निद्रा से जागने की मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि चार महीनों तक निद्रावस्था में रहने के बाद, देवता इसी दिन उठते हैं, और इसी से इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है।

व्रत की कथा

पुराणों के अनुसार, एक बार एक राजा अपने राज्य में धर्म का पालन करने के लिए एकादशी का व्रत रखने की आज्ञा सभी को देता है। उसके राज्य में हर व्यक्ति, चाहे वह प्रजा हो, नौकर-चाकर हो, या पशु-पक्षी, सभी एकादशी के दिन अन्न का सेवन नहीं करते थे। सभी लोग इस नियम का पालन करते हुए व्रत करते और भगवान की पूजा करते थे।

एक दिन, एक अन्य राज्य का व्यक्ति राजा के पास आया और नौकरी की याचना की। राजा ने उसे नौकरी तो दी, पर शर्त रखी कि उसे एकादशी के दिन अन्न नहीं मिलेगा, केवल फलाहार दिया जाएगा। व्यक्ति ने सहमति दे दी, लेकिन जब एकादशी का दिन आया और उसे फलाहार दिया गया, तो वह संतुष्ट नहीं हुआ और राजा से अन्न मांगने लगा।

राजा ने उसे समझाया कि एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जा सकता, लेकिन उस व्यक्ति ने जिद पकड़ी। आखिर में, राजा ने उसकी मांग पूरी कर दी और उसे अन्न दे दिया। वह व्यक्ति अन्न लेकर नदी किनारे भोजन पकाने चला गया। भोजन पकाकर उसने भगवान को आह्वान किया, “आओ भगवान! भोजन तैयार है।”

भगवान का आगमन

भगवान उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हो गए और पीताम्बर धारण किए चतुर्भुज रूप में उसके सामने आए। फिर दोनों ने साथ में प्रेमपूर्वक भोजन किया। इस प्रकार हर एकादशी को वह व्यक्ति भगवान के साथ भोजन करता और अपने काम पर लौट जाता।

अगली एकादशी के दिन उस व्यक्ति ने राजा से दुगना अन्न मांगा। उसने बताया कि भगवान भी उसके साथ भोजन करते हैं, इसलिए अन्न पूरा नहीं होता। राजा ने इसे सुनकर आश्चर्य से कहा, “मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ भोजन करते हैं। मैं तो वर्षों से व्रत कर रहा हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।”

राजा का परीक्षण

राजा की बात सुनकर उस व्यक्ति ने उसे प्रमाण दिखाने की बात कही और राजा को अपने साथ ले जाकर पेड़ के पीछे छिपा दिया। फिर उसने भगवान को भोजन के लिए पुकारना शुरू किया, परंतु भगवान नहीं आए। कई बार पुकारने के बाद भी भगवान नहीं आए, जिससे व्यक्ति निराश हो गया। उसने कहा, “हे भगवान! यदि आप नहीं आए, तो मैं प्राण त्याग दूंगा।”

यह सुनकर भगवान ने तुरंत प्रकट होकर उसे रोक लिया और फिर से उसके साथ भोजन किया। राजा ने यह दृश्य देखकर समझा कि वास्तविक भक्ति मन की शुद्धता से होती है, केवल बाहरी पूजा और व्रत से नहीं।

राजा को प्राप्त हुआ ज्ञान

इस अनुभव ने राजा को सिखाया कि व्रत-उपवास का असली लाभ तभी मिलता है, जब मन पूरी तरह से शुद्ध हो। उन्होंने महसूस किया कि केवल धार्मिक क्रियाएं ही पर्याप्त नहीं हैं; सच्ची भक्ति में संकल्प और समर्पण का होना आवश्यक है। इसके बाद राजा भी मन से व्रत-उपवास करने लगे और अंततः उन्हें भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

व्रत का महत्व

Dev Uthani Ekadashi से विवाह और मांगलिक कार्यों का भी प्रारंभ होता है, और इसे लेकर भारत के विभिन्न हिस्सों में विशेष पूजा-अर्चना होती है। इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और यह माना जाता है कि व्यक्ति के सभी दुख और कष्ट दूर होते हैं।

देवउठनी एकादशी केवल व्रत का दिन नहीं है; यह आत्म-शुद्धि और भगवान में संपूर्ण समर्पण की प्रतीक है। जो व्यक्ति मन से शुद्ध होकर भगवान को समर्पित होता है, वही सच्ची भक्ति का आनंद प्राप्त करता है।

Dev Uthani Ekadashi का व्रत और पूजा विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग-निद्रा से जागते हैं, और इसी के साथ सभी मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है।

इस व्रत को करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि, और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन व्रत करने और विधिपूर्वक पूजा करने से पुण्य फल मिलता है।

पूजा विधि

  1. स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी स्नान करके व्रत का संकल्प लें। शुद्ध वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठें।
  2. विष्णु प्रतिमा की स्थापना: भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को पीले वस्त्र पर स्थापित करें। इसे फूलों और माला से सजाएँ।
  3. दीप जलाएँ: भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएँ और पूजा स्थल को शुद्ध रखें।
  4. पंचामृत से स्नान कराएँ: विष्णु प्रतिमा को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और चीनी) से स्नान कराएँ। फिर उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
  5. अर्पण करें वस्त्र और आभूषण: भगवान विष्णु को पीले वस्त्र और तुलसी के पत्ते अर्पित करें।
  6. पुष्प और फल चढ़ाएँ: भगवान को ताजे फूल, फल, नारियल, और मिठाई अर्पित करें।
  7. तुलसी का महत्त्व: इस दिन तुलसी का विशेष महत्त्व है, इसलिए भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करें। मान्यता है कि भगवान विष्णु तुलसी के बिना अधूरे माने जाते हैं।
  8. आरती करें: देवउठनी एकादशी की आरती करें और भगवान की स्तुति करें। सभी आरती के दौरान परिवार के लोग भी शामिल हों।
  9. भोग अर्पित करें: पूजा के बाद भगवान को फलाहार और मिष्ठान का भोग लगाएँ।
  10. व्रत का पालन: इस दिन व्रत रखकर केवल फलाहार ग्रहण करें और दिनभर भगवान का स्मरण करें। रात्रि में जागरण करें और विष्णु भगवान के नामों का जाप करें।

देवउठनी एकादशी के मंत्र

देवउठनी एकादशी के दिन निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना विशेष फलदायी माना जाता है:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
  2. ॐ विष्णवे नमः।
  3. ॐ विष्णु: विष्णवे नमः।
  4. ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात।
  5. ॐ विष्णुं शरणं गच्छामि।

इन मंत्रों का 108 बार जाप करना उत्तम माना गया है। इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी किया जा सकता है।

देवउठनी एकादशी का महत्व

मांगलिक कार्यों का आरंभ: देवउठनी एकादशी से विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, और अन्य शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।

पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति: इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

धार्मिक मान्यता: ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत का पालन करता है, उसे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

पापों का नाश: इस दिन व्रत करने से जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति होती है, और व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।

देवउठनी एकादशी पर किए गए उपाय बहुत ही शुभ माने जाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के जागरण का पर्व मनाया जाता है, और उनकी कृपा पाने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। यहाँ पाँच प्रमुख उपाय दिए गए हैं, जिनसे व्यक्ति को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है:

देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की कृपा पाने के 5 सर्वश्रेष्ठ उपाय

  1. तुलसी की पूजा और दान करें

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ तुलसी माता की पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दिन तुलसी के पौधे को साफ करें, उस पर जल चढ़ाएँ और दीपक जलाएँ। तुलसी की माला से विष्णु भगवान के मंत्र का जाप करें। साथ ही, किसी मंदिर में तुलसी का दान करें। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

  1. पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें

इस दिन सुबह या शाम के समय पीपल के वृक्ष की पूजा करें और उसकी सात बार परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें। पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास माना जाता है, और इस उपाय से भगवान की विशेष कृपा मिलती है।

  1. अन्न और जरूरतमंदों को दान दें

देवउठनी एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, और अन्य आवश्यक सामग्री का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन अन्न का विशेष महत्त्व होता है, इसलिए अन्न दान करने से जीवन में समृद्धि आती है। इसके साथ ही, जरूरतमंद लोगों को भोजन करवाने से पुण्य की प्राप्ति होती है और पितृदोष भी शांत होता है।

  1. भगवान विष्णु के 108 नामों का जाप करें

इस दिन भगवान विष्णु के 108 नामों का जाप करें। इसके लिए सुबह स्नान कर विष्णु प्रतिमा के सामने बैठें और माला लेकर भगवान के नामों का उच्चारण करें। इस उपाय से मन की शुद्धि होती है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

  1. विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें

देवउठनी एकादशी पर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना गया है। विष्णु सहस्रनाम के पाठ से व्यक्ति के जीवन में शांति और समृद्धि आती है। यदि स्वयं पाठ करना संभव न हो, तो किसी योग्य व्यक्ति से यह पाठ करवाएं। इसे सुनने मात्र से भी मन को शांति और पवित्रता प्राप्त होती है।

इन उपायों को श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद मिलता है, और जीवन में सुख-समृद्धि तथा शांति का वास होता है।

एकादशी व्रत के नियम

  1. व्रत करने वाले को एक दिन पहले से ही सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए और विचारों में पवित्रता लानी चाहिए।
  2. एकादशी के दिन लहसुन, प्याज, मांसाहार, मदिरा, और अन्य तामसिक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  3. इस दिन अन्न का सेवन पूरी तरह से त्याग देना चाहिए। फलाहार का ही सेवन करें।
  4. अगर संभव हो, तो रात्रि में भगवान का जागरण करना चाहिए। इस दिन भजन, कीर्तन और विष्णु भगवान का स्मरण करें।
  5. अगले दिन (द्वादशी तिथि) को व्रत का पारण करें, जिसमें पहले भगवान को भोग लगाकर भोजन ग्रहण करें।

देवउठनी एकादशी की विशेष जानकारी

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीनों की योग-निद्रा से जागते हैं। इस समय का प्रतीकात्मक अर्थ है कि यह योग और ध्यान का समय है, जब व्यक्ति आत्म-विश्लेषण और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो। देवउठनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक शुद्धि होती है।

छब्बीसों एकादशी के नाम और उनके महीने के नाम:

  1. पद्म एकादशी – माघ माह (जनवरी-फरवरी)
  2. रुचिका एकादशी – माघ माह (जनवरी-फरवरी)
  3. सिंहिका एकादशी – फाल्गुन माह (फरवरी-मार्च)
  4. पद्मिनी एकादशी – चैत्र माह (मार्च-अप्रैल)
  5. वरुतिनी एकादशी – चैत्र माह (मार्च-अप्रैल)
  6. अपर्णा एकादशी – वैशाख माह (अप्रैल-मई)
  7. नृसिंह एकादशी – ज्येष्ठ माह (मई-जून)
  8. वैशाख शयन एकादशी – ज्येष्ठ माह (मई-जून)
  9. तुलसी एकादशी – आषाढ़ माह (जून-जुलाई)
  10. शायनी एकादशी – आषाढ़ माह (जून-जुलाई)
  11. हरिवासर एकादशी – भाद्रपद माह (अगस्त-सितंबर)
  12. कांस्य एकादशी – भाद्रपद माह (अगस्त-सितंबर)
  13. रमा एकादशी – आश्विन माह (सितंबर-अक्टूबर)
  14. देवउठनी एकादशी – कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर)
  15. वृद्धि एकादशी – कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर)
  16. मासिक एकादशी – मार्गशीर्ष माह (नवंबर-दिसंबर)
  17. विजया एकादशी – मार्गशीर्ष माह (नवंबर-दिसंबर)
  18. पार्वणी एकादशी – माघ माह (जनवरी-फरवरी)
  19. भीमसेनी एकादशी – माघ माह (जनवरी-फरवरी)
  20. शक्तिशाली एकादशी – फाल्गुन माह (फरवरी-मार्च)
  21. कृष्णपक्ष एकादशी – चैत्र माह (मार्च-अप्रैल)
  22. गांधारी एकादशी – वैशाख माह (अप्रैल-मई)
  23. पुरुषोत्तम एकादशी – ज्येष्ठ माह (मई-जून)
  24. द्वादशी एकादशी – आषाढ़ माह (जून-जुलाई)
  25. शरणागति एकादशी – भाद्रपद माह (अगस्त-सितंबर)
  26. सर्वज्ञ एकादशी – आश्विन माह (सितंबर-अक्टूबर)

ये सभी एकादशी के विशेष नाम हैं और विभिन्न महीनों में पड़ती हैं। इनका धार्मिक और व्रत रखने में बड़ा महत्व है।

एकादशी व्रत पारण की वस्तुएं: माह के अनुसार

चैत्र माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: गाय घी

बैसाख माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: कुशा जल

ज्येष्ठ माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: तिल

आषाढ़ माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: जौ आटा

श्रावण माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: दूर्वा

भाद्रपद माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: भुआ

आश्विन माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: गुड़

कार्तिक माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: तुलसी या विल्बपत्र

मार्गशीर्ष (अगहन) माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: गोमूत्र

पौष माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: गोमय

माघ माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: गाय दूध

फाल्गुन माह में एकादशी व्रत पारण की वस्तु: दही

देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह की कथा पढ़ें
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का महत्व भी अत्यधिक है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ तुलसी के पौधे का विवाह देवी विष्णुप्रिया से किया जाता है। तुलसी विवाह के बारे में अधिक जानने के लिए हमारी पूरी तुलसी विवाह कथा पढ़ें और जानें इसके धार्मिक महत्व और विधि के बारे में।

3/5 - (1 vote)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

© Puzanam.com 2024-2025