गणपति अथर्वशीर्ष: भगवान गणेश की महिमा 5 और लाभ

गणपति अथर्वशीर्ष

गणपति अथर्वशीर्ष: और 5 आध्यात्मिक उपाय

गणेश अथर्वशीर्ष एक पवित्र और लोकप्रिय ग्रंथ है, जो भगवान गणेश को समर्पित है। इस उपनिषद् में भगवान गणेश की महिमा और उनके दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसे पढ़ने और समझने से न केवल व्यक्ति की आस्था बढ़ती है, बल्कि इसे नियमित रूप से करने से भक्त को आध्यात्मिक शांति और मानसिक शुद्धता भी मिलती है।

गणेश अथर्वशीर्ष क्या है?

Ganesh Atharvashirsha एक वैदिक ग्रंथ है जो भगवान गणेश को समर्पित है। यह मुख्य रूप से गणेश जी की स्तुति करता है और उन्हें ओंकार के रूप में प्रस्तुत करता है, जो कि सृष्टि का आधार है। इसमें कहा गया है कि भगवान गणेश सर्वव्यापी हैं और वे ही सभी की उत्पत्ति के कारण हैं।

गणेश अथर्वशीर्ष में कुल 12 श्लोक हैं, जिनमें गणेश जी के गुणों, उनकी शक्तियों और उनकी महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ को पढ़ने से भक्त को गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में हर प्रकार की विघ्न-बाधा का अंत होता है।

गणपति अथर्वशीर्ष की रचना किसने की?

Ganesh Atharvashirsha की रचना ऋषि अथर्वण ने की थी, इसी कारण इसे “अथर्वशीर्ष” कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि ऋषि अथर्वण को भगवान गणेश की कृपा से इस उपनिषद् की प्रेरणा मिली, और उन्होंने इसे लिखा। इस ग्रंथ में भगवान गणेश के स्वरूप, शक्तियों और उनके महत्व को बहुत ही सरल और प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया गया है।

गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ के 5 लाभ

Ganesh Atharvashirsha का नियमित पाठ करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

  1. बुद्धि और स्मृति में वृद्धि
    भगवान गणेश को “बुद्धि के देवता” माना जाता है। उनका यह ग्रंथ पढ़ने से व्यक्ति की बुद्धि और स्मृति में सुधार होता है। विद्यार्थी और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है।
  2. शांति और संतुलन
    गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से मन को शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह व्यक्ति के तनाव और चिंता को दूर करता है और उसे मानसिक शांति प्रदान करता है।
  3. सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह
    इस ग्रंथ का पाठ करने से व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो उसे नकारात्मक शक्तियों से दूर रखता है और उसकी सुरक्षा करता है।
  4. विघ्नों का नाश
    भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है। इस ग्रंथ का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं, और उसे अपने कार्यों में सफलता मिलती है।
  5. धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति
    गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है। यह व्यक्ति को भगवान गणेश के प्रति आस्था और भक्ति में वृद्धि करता है।

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ की विधि

Ganesh Atharvashirsha का पाठ करने के लिए भक्त को शांत और शुद्ध मन से भगवान गणेश का ध्यान करना चाहिए। इसे करने के लिए विशेष रूप से सुबह का समय उपयुक्त माना जाता है।

  1. स्नान और शुद्धता
    पाठ करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यह पूजा की शुद्धता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  2. गणेश प्रतिमा के सामने बैठना
    पाठ करते समय गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें और उन्हें पुष्प, दूर्वा, और मोदक का भोग अर्पित करें।
  3. मंत्रों का सही उच्चारण
    गणपति अथर्वशीर्ष के मंत्रों का सही उच्चारण करना चाहिए। यदि संभव हो, तो किसी विद्वान से मार्गदर्शन लेकर ही इसका पाठ शुरू करें।
  4. एकाग्रता और ध्यान
    पाठ करते समय ध्यान केंद्रित रखें और भगवान गणेश के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करें। इससे पाठ का अधिक लाभ प्राप्त होता है।

गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्रम्

गणपति अथर्वशीर्ष एक महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ है, जिसमें भगवान गणेश की महिमा और स्तुति का उल्लेख किया गया है। इसे गणेश भक्तों द्वारा श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाता है, ताकि गणेश जी की कृपा प्राप्त हो और जीवन की सभी विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिले।

गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्रम् का पाठ इस प्रकार है:

ॐ नमस्ते गणपतये ।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षाद् आत्माऽसि नित्यम् ॥ 1॥

ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ॥ 2॥

अव त्वं माम् । अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् ।
अव दातारम् ।
अव धातारम् ।
अवानूचानमव शिष्यम् ॥
अव पश्चातात् ।
अव पुरस्तात् ।
अवोत्तरात्तात् ।
अव दक्षिणात्तात् ।
अव चोध्वर्तात्तात् ।
अवाधरतात्तात् ।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥ 3॥

त्वं वाङ् मयस्त्वं चिन्मयः ।
त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥ 4॥

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति ।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति ।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥ 5॥

त्वं गुणत्रयातीतः ।
त्वं अवस्थात्रयातीतः ।
त्वं देहत्रयातीतः ।
त्वं कालत्रयातीतः ।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
त्वं शक्तित्रयात्मकः ।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।
त्वं ब्रह्मास्त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम् ॥ 6॥

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः ।
अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् ।
एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् ।
अकारो मध्यमरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।
बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः सन्धानम् ।
सैषा गणेशविद्या ।
गणक ऋषिः ।
निचृद्गायत्री छन्दः ।
गणपतिर्देवता ।
ॐ गं गणपतये नमः ॥ 7॥

एकदन्ताय विद्महे ।
वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥ 8॥

एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम् ।
भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥ 9॥

नमो व्रातपतये ।
नमो गणपतये ।
नमः प्रमथपतये ।
नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः ॥ 10॥

ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु
मा विद्विषावहै।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ ॥

गणेश अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन की हर विघ्न-बाधा को दूर करती है और भक्त को समृद्धि, शांति और सफलता प्रदान करती है।

निष्कर्ष

गणेश अथर्वशीर्ष भगवान गणेश की महिमा का स्तुति है। इसका पाठ व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और शांति लाता है। भगवान गणेश की कृपा से व्यक्ति के जीवन की सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं, और उसे सफलता प्राप्त होती है।

गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने के बाद भगवान श्री गणेश की आरती करने से विशेष पुण्य मिलता है और आपके जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। यह आरती भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करती है और उनकी कृपा प्राप्त करने का एक सर्वोत्तम तरीका है।

5/5 - (1 vote)

Leave a Comment