Shri Ram Ji Ki Aarti: श्री राम जी की आरती 3 रूप में

Shri Ram Ji Ki Aarti: 3 रूप में तीन प्रमुख प्रकारShri Ram Ji Ki Aarti
हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है,
जिसमें भगवान राम की पूजा और उनके गुणों का
गुणगान किया जाता है। इस आरती के तीन प्रमुख प्रकार
हैं, जिनमें राम जी के विभिन्न रूपों और गुणों का वर्णन
किया गया है। ये आरतियाँ भक्तों के मन में भगवान राम
के प्रति भक्ति और श्रद्धा की भावना को गहरा करती हैं।
Shri Ram Ji Ki Aarti: श्री राम जी की आरती
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।
नव कंजलोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कंजारुणं।।
कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील नीरद सुन्दरं।
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतवरं ।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्यवंश रघुनन्द आनंदकंद
कौशलचन्द दशरथ निकन्दंन । नन्दनं ।।
सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां।
आजानुभुज शर- चाप धर सग्राम जित – खरदूषणमं ।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं।
मम हृदय – कंच निवास कुरु कामादि खलदल – गंजनं ।।
मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो।।
एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हिय हरषीं
अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली।।
दोहा जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
Shri Ram Ji Ki Aarti: श्री राम जी की आरती

आरती कीजे श्रीरामलला की। पूण निपुण धनुवेद कला की ।।
धनुष वान कर सोहत नीके। शोभा कोटि मदन मद फीके ।।
सुभग सिंहासन आप बिराजैं। वाम भाग वैदेही राजें ।।
कर जोरे रिपुहन हनुमाना। भरत लखन सेवत बिधि नाना ।।
शिव अज नारद गुन गन गावैं। निगम नेति कह पार न पावें ।।
नाम प्रभाव सकल जग जानें। शेष महेश गनेस बखानैं
भगत कामतरु पूरणकामा। दया क्षमा करुना गुन धामा।।
सुग्रीवहुँ को कपिपति कीन्हा। राज विभीषन को प्रभु दीन्हा।।
खेल खेल महु सिंधु बधाये। लोक सकल अनुपम यश छाये।।
दुर्गम गढ़ लंका पति मारे। सुर नर मुनि सबके भय टारे
देवन थापि सुजस विस्तारे। कोटिक दीन मलीन उधारे।।
कपि केवट खग निसचर केरे। करि करुना दुःख दोष
निवेरे ।।
देत सदा दासन्ह को माना। जगतपूज भे कपि हनुमाना।।
आरत दीन सदा सत्कारे। तिहुपुर होत राम जयकारे ।।
कौसल्यादि सकल महतारी। दशरथ आदि भगत प्रभु
झारी ।। सुर नर मुनि प्रभु गुन गन गाई।
आरति करत बहुत सुख पाई ।।
धूप दीप चन्दन नैवेदा। मन दृढ़ करि नहि कवनव भेदा ।।
राम लला की आरती गावै। राम कृपा अभिमत फल पावै ।।
श्री राम जी की आरती

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की।
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन ॥
रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे ॥
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा ॥
पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें ॥